केदारनाथ धाम का क्या है महाभारत के पांडवों से संबंध, जानें कैसे विराजमान हुए भोलेनाथ?

Kedarnath Story: अक्षय तृतीया से केदारनाथ धाम के कपाट खुलने वाले हैं. हिंदुओं के चार पवित्र धामों में से एक धाम केदारनाथ में बाबा शिव का दर्शन करने के लिए लाखों लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा रखा है,लेकिन क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ का संबंध महाभारत के पांडुओं से भी है. 

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Kedarnath Story: 10 मई को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जा रहा है. इसके साथ ही इस दिन से ही चार धामों की यात्रा शुरू हो जाएगी. सुबह करीब 7 बजे चार धामों में से एक धाम केदारनाथ के कपाट खुल जाएंगे. बाबा शिव के दर्शन के लिए लाखों भक्तों ने पंजीकरण करा रखा है. क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर का इतिहास कितना पुराना है.अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं इस मंदिर का इतिहास क्या रहा है. 

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम में भोलेनाथ लिंग रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां भगवान शिव द्वारा धारण किए गए बैल रूप के गर्दन के ऊपर के भाग का पूजन किया जाता है. इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से भी माना जाता है. केदारनाथ धाम में हर वर्ष लाखों के संख्या में श्रद्धालु आते हैं. धाम के कपाट हर साल अप्रैल या मई माह में खुल जाते हैं. शीतकाल में बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली को ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है. इसी जगह पर भगवान शिव 6 माह तक विराजते हैं. इसके बाद डोली वापस मंदिर में जाती है. 

महाभारत काल से है इस मंदिर का संबंध

स्कंद पुराण के केदार खंड में इस धाम का उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ था. पांडवों के वंशज जन्मेजय ने यहां पर मंदिर की स्थापना की थी और बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. 

भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति को यहां आए थे पांडव 

केदारनाथ धाम के संबंध में एक मान्यता यह भी है कि जब महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने गोत्र के भाइयों की हत्या करने के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाना चाहते थे,तब उन्होंने भगवान शिव की खोज करनी शुरू की और वे खोज करते-करते हिमालय की ओर आ गए. उस समय भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदारधाम में बस गए. 

इस पर पांडव भी उनका पीछा करते हुए केदार पर्वत पर पहुंच गए. भगवान शिव ने पांडवों को अपने पास आता देखा तो उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया. इस पर भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडव भीम ने अपना रूप विस्तार किया और अपने पांव केदार पर्वत की ओर फैला दिए. इस पर वहां मौजूद सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजर गए पर जब बैल का रूप धारण किए भगवान शिव भीम के पैर के नीचे से निकले तो उन्होंने भगवान शिव को पहचान लिया. इस पर उन्होंने उस बैल को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगा. इस पर भीम ने बैल के गर्दन के ऊपर का भाग कसकर पकड़ लिया. 

भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हो प्रकट हो गए और उन्हें भाइयों की हत्या के पाप से मुक्त कर दिया. मान्यता है कि यहां आज भी बैल के कूबड़ की आकृति को पूजा जाता है. इस बैल का मुख नेपाल में निकला है. यहां भगवान शिव का पूजन पशुपतिनाथ के रूप में किया जाता है. 

नर और नारायण ऋषि के किया था पूजन

मान्यता है कि हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी. नर और नारायण ने भगवान शिव की आराधना की तो उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए. इसके बाद नर और नारायण ऋषि ने भगवान शिव से ज्योतिर्लिंग स्वरूप में यहां सदैव निवास करने का वर प्राप्त किया. 

Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.  theindiadaily.com  इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.