भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकार गुरुदत्त की 100वीं जयंती पर, उनकी कालजयी फ़िल्मों को याद करने का यह सही मौका है. उनकी अनूठी कहानी कहने की शैली और गहरे भावों ने उन्हें अमर बनाया.
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प्यासा
प्यासा में गुरुदत्त ने विजय के रूप में एक कवि की आत्मा को जीवंत किया, जो समाज की उपेक्षा और प्रेम में धोखे का शिकार होता है. यह फिल्म कला और जीवन के संघर्ष को दर्शाती है.
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कागज के फूल
कागज के फूल एक फिल्मकार की उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी की कहानी है. गुरुदत्त का संवेदनशील निर्देशन और अभिनय इसे भारतीय सिनेमा की मील का पत्थर बनाता है.
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साहिब बीबी और गुलाम
यह फिल्म एक हवेली के पतन और प्रेम की जटिलताओं को बयां करती है. गुरुदत्त का भूतनाथ किरदार संवेदनशीलता और गहराई से भरा है.
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चौदहवीं का चांद
लखनऊ की पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म प्रेम और दोस्ती के बीच उलझे रिश्तों को दर्शाती है. गुरुदत्त का अभिनय और वहीदा रहमान की खूबसूरती इसे अविस्मरणीय बनाती है.
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बाजी
गुरुदत्त की पहली निर्देशित फिल्म बाजी एक रोमांचक क्राइम थ्रिलर है. उनका निर्देशन इस फ़िल्म को तेज रफ्तार और आकर्षक बनाता है.
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आर पार
आर पार में गुरुदत्त का बेफिक्र अंदाज और कॉमिक टाइमिंग दर्शकों को बांधे रखती है. यह फ़िल्म उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को दर्शाती है.
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मिस्टर एंड मिसेज '55
यह रोमांटिक कॉमेडी गुरुदत्त की हल्के-फुल्के अंदाज की मिसाल है. उनकी निर्देशकीय प्रतिभा इस फिल्म में खूब खिलकर सामने आती है.