7 किलो का कैंसर ट्यूमर, 25 साल बाद मिली मुक्ति, जानें क्या है वो बीमारी जिसके लिए लगी 10 घंटे वाली सर्जरी
Sarcoma Cancer Tumor: एम्स-भुवनेश्वर के डॉक्टरों ने 51 वर्षीय व्यक्ति के सिर से 7 किलो का विशाल कैंसर ट्यूमर निकालने के लिए 10 घंटे की जोखिम भरी सर्जरी की. डॉक्टरों ने कहा कि ट्यूमर, जो पहले आकार में छोटा था, सर्जरी से सात महीने पहले तेजी से बढ़ गया, जिससे उनके चलने-फिरने, काम करने और दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों पर गंभीर असर पड़ा. उन्हें हुए सारकोमा ट्यूमर के बारे में अधिक जानने के लिए पूरा पढ़ें.
Sarcoma Cancer Tumor: पश्चिम बंगाल के रहने वाले 51 वर्षीय रवींद्र बिसुई के जीवन में उस वक्त अविश्वसनीय बदलाव आया, जब डॉक्टरों ने उनके सिर से निकल रहे एक विशाल ट्यूमर को 10 घंटे की मुश्किल सर्जरी के बाद निकाल दिया. रवींद्र इस कैंसरग्रस्त सरकोमा ट्यूमर के साथ 25 सालों तक जिए थे. भुवनेश्वर स्थित एम्स में उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों के अनुसार, पहले छोटे आकार का यह ट्यूमर उनकी सर्जरी से सात महीने पहले तेजी से बढ़ा था. उस वक्त इसका वजन 7 किलो तक पहुंच गया था, जिससे रवींद्र की गतिशीलता, काम और दैनिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हो रही थीं.
रवींद्र को सिनोवियल सरकोमा नाम का दुर्लभ कैंसर था. यह आमतौर पर हाथों और पैरों के जोड़ों, जैसे घुटनों और कोहनी के आसपास होता है. डॉक्टरों के अनुसार, सरकोमा शरीर में कहीं भी हो सकता है और यह तेजी से बढ़ने और दूसरे अंगों में फैलने के लिए जाना जाता है. सरकोमा के कई सब-वैरिएंट होते हैं, जिनमें से हर किसी की अपनी विशेषताएं और डायगनोसिस होते हैं.
जोखिम भरा ऑपरेशन
डॉक्टरों के मुताबिक, रवींद्र के ट्यूमर के आसपास रक्त वाहिकाओं का जाल मुश्किल था, जिसने सर्जरी को बेहद मुश्किल और जोखिम भरा बना दिया था. एम्स-भुवनेश्वर में बर्न्स और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ संजय गिरि ने बताया कि ट्यूमर असामान्य रूप से बड़ा था. 10 घंटे की इस लंबी प्रक्रिया के दौरान सर्जनों ने कैंसरयुक्त ट्यूमर को निकालने का तो ध्यान रखा ही, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि रवींद्र की खोपड़ी की हड्डी बची रहे.
सरकोमा का कारण क्या है?
विशेषज्ञों के अनुसार, सरकोमा के कारणों को पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन कुछ जोखिम कारकों की पहचान की गई है. इनमें जेनेटिक प्रीडिस्पोजिशन, रेडिएशन के संपर्क में आना, कुछ विरासत में मिली कंडीशन्स जैसे ली-फ्राउमेनी सिंड्रोम और न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, साथ ही कुछ कीमोथेरेपी दवाओं के साथ पिछले डायगनोसिस शामिल हैं. हालांकि, कई मामलों में, सटीक कारण पता नहीं चल पाता है.
डॉक्टरों का कहना है कि सरकोमा से जुड़े कई जोखिम कारक हैं, जिनमें शामिल हैं:
- केमिकल्स के संपर्क में आना
- आर्सेनिक और कई ऐसे केमिकल्स के संपर्क में आना जिनका उपयोग प्लास्टिक बनाने में किया जाता है, जैसे विनाइल क्लोराइड मोनोमर, हर्बिसाइड और लकड़ी के परिरक्षक
- पिछले कैंसर के इलाज से उच्च खुराक वाला विकिरण
- हाथों या पैरों में लंबे समय तक सूजन
- कई विरासत में मिले डिसऑर्डर और क्रोमोजोमल म्यूटेशन जैसे गार्डनर सिंड्रोम
सरकोमा का इलाज कैसे किया जाता है?
सरकोमा के डायगनोसिस के विकल्प सरकोमा के सब-वैरिएंट, उसकी कंडिशन और रोगी के ओवरऑल हेल्थ स्टेटस जैसे कारकों पर निर्भर करते हैं. लोकलाइजड सरकोमा के लिए सर्जरी प्राइमरी डायगनोसिस है, जिसका टारगेट ट्यूमर और हेल्थी टिशू के मार्जिन को निकालना होता है ताकि दोबारा वापसी के जोखिम को कम किया जा सके. कुछ मामलों में, ट्यूमर को छोटा करने या बची हुई कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करने के लिए सर्जरी से पहले या बाद में रेडियोथेरेपी का उपयोग किया जा सकता है.
एडवांस या मेटास्टेटिक सरकोमा के लिए, डायगनोसिस में कीमोथेरेपी, टारगेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी या इन एप्रोच के कॉम्बिनेशन शामिल हो सकते हैं. डॉक्सोरूबिसिन और इफॉस्फामाइड जैसी कीमोथेरेपी दवाओं का इस्तेमाल आमतौर पर अकेले या अन्य दवाओं के साथ मिलकर सरकोमा के इलाज के लिए किया जाता है. सरकोमा के स्पेशलिस्ट सब-वैरिएंटों के लिए जिनमें जेनेटिक म्यूटेशन होते हैं, उनके लिए टारगेटेड थेरेपी दवाएं भी निर्धारित की जा सकती हैं.
इम्यूनोथेरेपी, जो शरीर की इम्यून सिस्टम को कैंसर से लड़ने के लिए उपयोग करती है, का भी सरकोमा के संभावित डायगनोसिस के रूप में अध्ययन किया जा रहा है, कुछ मामलों में इसके आशाजनक परिणाम सामने आए हैं. 10 घंटे की सर्जरी के बाद रवींद्र की रिकवरी धीमी लेकिन स्थिर रही. वह अब दर्द से मुक्त हैं और धीरे-धीरे अपने दैनिक जीवन में वापसी कर रहे हैं. रवींद्र का यह मामला इस बात का उदाहरण है कि मुश्किल सर्जरी भी जीवन रक्षक हो सकती है.