Mahabharat Facts: महाभारत काल में कई ऐसे बड़े-बड़े शूरवीर हुए, जिनकी कहानियों को सुनकर लोगों के रोंगटें खड़े हो जाते हैं. इसके साथ इस कुछ ऐसे भी योद्धा थे, जिन्होंने जीवन में जो एक बार प्रण कर लिया, उसको कभी तोड़ा नहीं. इस कारण आज हम आपको एक ऐसे योद्धा की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिसने अपने पिता के खातिर आजीवन कुंवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा ली थी.
जी हां, हम बात कर रहे हैं महाभारत काल के शूरवीर योद्धा भीष्म पितामह की. भीष्म पितामह जैसे प्रतिज्ञा लेने वाला योद्धा उनके अलावा की इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं हुआ. भीष्म पितामह का मूल नाम देवव्रत था. वे महाराज शांतनु और गंगा के पुत्र थे. उनकी माता गंगा होने के कारण उन्हें गंगापुत्र भी कहा जाता था. भीष्म शूरवीर और प्रतापी योद्धा थे. भीष्म पितामह ने अपने पिता के प्रेम के खातिर कभी भी विवाह नहीं किया.
भीष्म पितामह के पिता शांतनु आखेट करने के लिए नदी के किनारे गए हुए थे. वहां उनकी नजर नाव चलाने वाली सुंदर स्त्री पर गई. इस स्त्री का नाम सत्यवती था. राजा शांतुन उस स्त्री पर मोहित हो गए. उन्होंने उस स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रख दिया. सत्यवती एक अप्सरा की पुत्री थीं, जिनको मछली बने रहने का श्राप मिला था. उनका पालन और पोषण एक केवट के द्वारा किया गया था.
सत्यवती भी शांतनु का देखकर मोहित हो गईं. इसके साथ ही उन्होंने राजा शांतनु से कहा कि अगर आपको मुझसे विवाह करना है तो मेरे पिता से इसकी अनुमति लेनी होगी. शांतनु सत्यवती के कहने पर उस केवट के पास पहुंचे. केवट ने विवाह के लिए शांतनु के सामने शर्त रख दी कि उनकी बेटी की संतान ही हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठेगी.इस पर शांतनु ने बताया कि उन्होंने अपने पुत्र देवव्रत को युवराज घोषित कर दिया है. इस कारण ऐसा होना संभव नहीं है. केवट ने अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह शांतनु से कराने से मना कर दिया. इस बात से शांतनु काफी अधिक दुखी हुए, लेकिन फिर भी वे सत्यवती के प्रेम को भुला नहीं पाए और रोजाना नदी के किनारे जाकर सत्यवती को देखते रहते थे.
सत्यवती से विवाह न हो पाने के चलते भीष्म काफी दुखी रहने लगे. उनके दुखी रहने का कारण जानने के लिए एक दिन वह अपने पिता के पीछे वन मे गए. यहां पर उन्होंने देखा कि शांतनु छिपकर एक स्त्री को देख रहे थे. यह घटना देखकर भीष्म से रहा नहीं गया, उन्होंने अपने पिता से इसका कारण पूछ लिया. इस पर शांतनु ने अपने पुत्र का पूरी कहानी बताई. पिता की प्रेम कहानी को सुन भीष्म और शांतनु दोबारा उस केवट के पास पहुंचे और सत्यवती से विवाह करने का प्रस्ताव उस केवट के सामने रख दिया.
इस पर जब दोबारा केवट ने अपनी शर्त दोहराई तो भीष्म ने कहा कि मैं वचन देता हूं कि हस्तिनापुर की राजगद्दी पर कोई भी अधिकार नहीं रखूंगा. सत्यवती से पैदा होने वाली संतान ही इस राजगद्दी की वारिस होगी.
इस पर केवट ने कहा कि अगर तुम्हारी संतान ने सत्यवती के पुत्र के विरूद्ध अपना अधिकार मांग लिया तो क्या होगा. इस पर भीष्म ने केवट के सामने प्रतिज्ञा ली की वे आजीवन कुंवारे ही रहेंगे. अपने पिता के खातिर वे कभी भी शादी नहीं करेंगे. भीष्म के इस वचन से केवट प्रसन्न हुआ और वह सत्यवती से शांतनु का विवाह कराने के लिए राजी हो गया. इसी कारण प्रसन्न होकर राजा शांतनु ने भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान दिया था.
शांतनु और सत्यवती के आगे चलकर दो पुत्र हुए इनका नाम चित्रांगद और विचित्रवीर्य था. जब ये दोनों छोटे थे, तभी शांतनु की मृत्यु हो गई. भीष्म ने इनका पालन पोषण किया और चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया. गंधर्व युद्ध में चित्रांगद की भी मृत्यु हो गई. इसके बाद भीष्म ने विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर का राजकुमार बनाया, यही विचित्रवीर्य पांडवों और कौरवों के दादा बने.
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