Arvinder Singh Lovely Resignation Impact: दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने एक दिन पहले यानी रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उनका इस्तीफा ऐसे वक्त में आया है, जब दिल्ली में लोकसभा चुनाव होने हैं. सवाल उठ रहे हैं कि क्या लवली के इस्तीफे का खामियाजा दिल्ली कांग्रेस को उठाना पड़ेगा? आइए, समझते हैं.
दिल्ली के सिख बहुल तिलक नगर में सफल कार्यक्रम और पार्टी के झंडे को लहराने वाले अरविंदर सिंह लवली ने करीब छह महीने पहले कांग्रेस आलाकमान को प्रभावित किया था. कहा गया कि सिख विरोधी दंगों से प्रभावित क्षेत्र में ये कांग्रेस की वापसी का प्रतीक था. ये सब होने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने अरविंदर सिंह लवली को 'दिल्ली का सरदार' बता दिया. कार्यक्रम में मौजूद दिल्ली कांग्रेस के सीनियर नेता ने कहा कि अरविंदर सिंह का ये कार्यक्रम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पार्टी की जनता तक पहुंच को आसान बनाएगी.
अब अरविंदर सिंह लवली ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में दिल्ली कांग्रेस के कुछ लोगों का मानना है कि उनके इस्तीफे से सिखों के प्रभुत्व वाले विधानसभा क्षेत्रों में आप-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होने की संभावना है. कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि सिख समुदाय और अरविंदर सिंह लवली के समर्थक उनकी ओर से लगाए गए आरोपों के बाद पार्टी से खुश नहीं होंगे. उनके इस्तीफे का तिलक नगर, हरि नगर, राजौरी गार्डन, लक्ष्मी नगर, सिविल लाइंस और जंगपुरा जैसे विधानसभा क्षेत्रों में नाकारात्मक असर पड़ेगा. ये इलाके उत्तर पश्चिम दिल्ली में आते हैं, जहां पूर्वी दिल्ली और चांदनी चौक लोकसभा सीटें हैं.
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि अरविंदर सिंह लवली को पार्टी से भरोसा मिला था कि वे उन कई पुराने लोगों में से होंगे, जिन्हें लोकसभा टिकट मिलेगा. अरविंदर सिंह लवली उत्तर पूर्व लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ना चाहते थे, लेकिन कन्हैया कुमार को टिकट देने के कांग्रेस आलाकमान के फैसले से नाराज थे. अपने इस्तीफे पत्र में, दिल्ली कांग्रेस के पूर्व प्रमुख ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) प्रभारी दीपक बाबरिया पर भी निशाना साधा था.
आने वाले दिनों में और अधिक इस्तीफों और पार्टी छोड़ने की आशंका पर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कहा कि अरविंदर सिंह लवली दिल्ली कांग्रेस के सीनियर नेताओं में शामिल हैं, जो दिल्ली में आम आदमी पार्टी के खिलाफ एक राजनीतिक, भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा बना सकते हैं. कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि ये वही नेता हैं, जिन्होंने आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि पिछले कुछ महीनों पहले कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को फिर से पार्टी में शामिल कर लोकसभा का टिकट दिया जाएगा. लेकिन पार्टी के सीनियर नेतृत्व ने आखिर समय में दीपक बाबरिया के सुझाव पर टिकट देने से इनकार कर दिया. लवली के इस्तीफे से एक दिन पहले दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारियों समेत सिख समुदाय के करीब एक हजार से अधिक सदस्यों ने जेपी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा ज्वाइन की थी.
लवली की आलोचना करते हुए पार्टी के पूर्व कांग्रेस ओखला विधायक आसिफ मोहम्मद खान ने कहा कि आपको बाबरिया से शिकायत हो सकती है, इसलिए आलाकमान के पास जाते और जानकारी देते. जब शीला दीक्षित को डीपीसीसी अध्यक्ष बनाया गया तो उन्हें भी उत्तर प्रदेश से लाया गया था. क्या संदीप दीक्षित ने कभी सवाल किया कि उनकी मां को डीपीसीसी का प्रभार क्यों दिया गया?
आसिफ मोहम्मद खान ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के बारे में लवली की चिंताओं को खारिज कर दिया, जो उनके इस्तीफे पत्र में उठाई गई थी. पूर्व विधायक ने कहा कि आप के साथ तालमेल कौन कर रहा था? लवली जा रहे थे, सुभाष चोपड़ा जा रहे थे, हारून यूसुफ जा रहे थे... मुझे भी कई दिनों से फोन आ रहे हैं और इस फेरहिस्त में शामिल होने के लिए दबाव डाला जा रहा है... मैं ऐसा नहीं करूंगा और कांग्रेस में ही रहूंगा. यहां तक कि मैं भी आप के साथ गठबंधन करने के पक्ष में नहीं था, लेकिन जब आलाकमान ने फैसला किया, तो हम निर्देशों के साथ आगे बढ़े और आगे भी ऐसा करते रहेंगे.
1998 में, लवली दिल्ली के सबसे कम उम्र के विधायक बने और पांच साल बाद 30 साल की उम्र में शीला दीक्षित सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने. तत्कालीन मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र माने जाने वाले अरविंदर सिंह लवली को तीन कार्यकाल के दौरान शिक्षा, परिवहन और शहरी विकास जैसे प्रमुख विभाग मिले. उनके कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली की ब्लू लाइन बसों को हरे, लाल और नारंगी रंग की लो-फ्लोर बसों से बदल दिया गया था.
लवली उस समय शिक्षा मंत्री थे, जब दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% आरक्षण लागू करने वाली पहली सरकार बनी. वे शहरी विकास मंत्री थे, जब 2012-13 में पहली बार अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की मंजूरी दी गई थी. हालांकि, योजना को केंद्र की मंजूरी मिलने और जमीन पर लागू होने में काफी समय लगा. ये उस वक्त हुआ, जब 2018-19 में केंद्र में भाजपा सत्ता में थी.
कथित भ्रष्टाचार को लेकर आम आदमी पार्टी की ओर से निशाना बनाए जाने के बावजूद लवली ने 2013 में आप को बाहर से समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि, ये सरकार मात्र 49 दिनों तक चली थी. इससे पहले जब लवली दिल्ली कांग्रेस के चीफ थे, तब आम आदमी पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार मिली थी. इसके बाद लवली ने पहली बार डीपीसीसी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. 2017 के नगर निगम चुनावों के बीच में उन्होंने पार्टी की स्थिति के लिए गांधी परिवार को दोषी ठहराते हुए अचानक कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन 2018 की शुरुआत में कांग्रेस में लौट आए.