WC 2023: 31 साल में दुनिया बदली, नहीं बदले तो 'चोकर्स'
साउथ अफ्रीका का चोकिंग का इतिहास 1992 से चला आ रहा है. तब प्रोटियाज की क्रिकेट में वापसी ही हुई थी.
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1992 के सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 13 गेंदों में 22 रन बनाने थे. लेकिन बारिश हो गई और ब्रेक के बाद प्रोटियाज को जीत के लिए सिर्फ एक गेंद पर 22 रन चाहिए थे.
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1999 में साउथ अफ्रीका का सामना ऑस्ट्रेलिया से हुआ. एलन डोनाल्ड के रन-आउट के चलते ये मैच टाई हुआ था. ऑस्ट्रेलिया बेहतर रन रेट के चलते फाइनल में पहुंचा.
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2003 के विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका को सुपर-8 में जगह बनाने के लिए अपने आखिरी ग्रुप स्टेज मैच में जीत की जरूरत थी. श्रीलंका के खिलाफ इस मैच में बारिश आ गई थी.
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तब मार्क बाउचर क्रीज पर मौजूद होकर ये नहीं समझ सके कि उन्हें डीएलएस के बराबर के स्कोर से आगे निकलने के लिए एक सिंगल की जरूरत थी. वे डॉट बॉल खेल बैठे.
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2007 के विश्व कप सेमीफाइनल में, ग्लेन मैकग्राथ ने शुरुआती झटके देकर दक्षिण अफ्रीका के सपनों को पहले दस ओवरों में ही खत्म कर दिया। ये टीम 149 रन पर आउट हो गई.
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2011 के क्वार्टर फाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ, प्रोटियाज जीत के लिए 222 रनों का पीछा करते हुए 108 रन पर 2 विकेट पर अच्छी स्थिति में थे.
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फिर जैकब ओरम के चार विकेट लिए जिससे साउथ अफ्रीका को फिर 49 रनों से हार का सामना करना पड़ा और अंततः टूर्नामेंट से बाहर हो गए.
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प्रोटियाज के लिए एक और दिल टूटने का क्षण 2015 के विश्व कप सेमीफाइनल में हुआ था. तब दक्षिण अफ्रीकी फील्डिंग यूनिट ने महत्वपूर्ण कैच छोड़े. जिससे न्यूजीलैंड ने 298 रन का टारगेट 43 ओवर में हासिल कर लिया.
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