क्या है दुबई में हिंदुओं के 18 घंटे 'रोजा' रखने का राज?
Ritu Sharma
2025/03/28 10:42:13 IST
रोजा रखने के कई कारण
उनका मानना है कि रोजा सिर्फ उपवास का महीना नहीं, बल्कि यह आत्म-संयम और अनुशासन का प्रतीक है. वे इसे एक आध्यात्मिक सफर मानते हैं, जो धर्म से परे एकता को दर्शाता है.
Credit: Social Mediaबिना सहरी के रखते हैं रोजा
विद्याधरन अन्य रोजेदारों की तरह सहरी नहीं करते, यानी वे सुबह से बिना कुछ खाए-पीए शाम तक उपवास रखते हैं. वे खजूर, फल और शाकाहारी भोजन से इफ्तार करते हैं.
Credit: Social Media1992 से लगातार रख रहे हैं रोजा
विद्याधरन ने 1992 में पहली बार रमजान के दौरान 30 दिन का रोजा रखा और तब से यह सिलसिला अभी तक जारी है. वे चांद दिखने का इंतजार नहीं करते, बल्कि हर साल पूरे 30 दिन उपवास रखते हैं.
Credit: Social Mediaसमाज सेवा में भी आगे
रोजा रखने के अलावा वे ग्लोबल प्रवासी यूनियन और अन्य भारतीय संगठनों के माध्यम से इफ्तार वितरण कार्यक्रमों में भी भाग लेते हैं. साथ ही, वे प्रवासियों के शवों को उनके देश वापस भेजने के काम में भी मदद करते हैं.
Credit: Social Mediaसमानता को बढ़ावा
कई लोगों का मानना है कि अगर लोग एक-दूसरे की परंपराओं और भावनाओं का सम्मान करें, तो समाज में शांति और भाईचारा बना रह सकता है.
Credit: Social Mediaरमजान से मिली अनुशासन और आत्म-संयम की सीख
रोजा रखने से अनुशासन और आत्म-संयम की भावना विकसित होती है, जिससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है.
Credit: Social Mediaदिल मिलना चाहिए, धर्म नहीं'
विद्याधरन की कहानी धार्मिक परिवर्तन और सामाजिक सौहार्द का सबसे अच्छा उदाहरण है. वे यह साबित करते हैं कि धर्म से ऊपर इंसानियत और भाईचारे की भावना होती है.
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