पुणे के एक इंजीनियर ने अपनी नौकरी छोड़ने का कारण सार्वजनिक रूप से साझा किया, जो करोड़ों की सैलरी और नौकरी की सुरक्षा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था. भूपेंद्र विश्वकर्मा, जिन्होंने इंफोसिस में सिस्टम इंजीनियर के रूप में कार्य किया, ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट लिखकर खुलासा किया कि क्यों उन्होंने बिना दूसरी नौकरी के ऑफर के अपनी पदवी छोड़ दी. उन्होंने अपने अनुभवों और विभिन्न कारणों को उजागर किया, जिनके कारण उन्होंने यह बड़ा कदम उठाया.
भूपेंद्र ने अपने पोस्ट में इंफोसिस जैसी बड़ी टेक कंपनी में काम करने के दौरान सामने आए कई systemic issues का जिक्र किया, जिनका सामना अक्सर कर्मचारी चुपचाप करते हैं. उन्होंने बताया कि ये मुद्दे केवल उनके व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि अन्य कर्मचारियों के लिए भी आम हो सकते हैं.
1. नो फाइनेंशियल ग्रोथ
भूपेंद्र ने बताया कि उन्होंने तीन सालों तक कठिन मेहनत की, अपनी टीम के लक्ष्यों को पूरा किया और अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन इसके बावजूद उनकी पदोन्नति का कोई वित्तीय लाभ नहीं मिला. वह बताते हैं कि जब उन्हें "सिस्टम इंजीनियर" से "सीनियर सिस्टम इंजीनियर" पद पर प्रमोट किया गया, तो उनका वेतन नहीं बढ़ा. उनका कहना था, "मैंने तीन साल तक मेहनत की, अपेक्षाएँ पूरी कीं और टीम में योगदान दिया, लेकिन मेरी मेहनत का कोई वित्तीय प्रतिफल नहीं मिला."
2. एक्स्ट्रा वर्कलोड
भूपेंद्र ने कहा कि जब उनकी टीम में कर्मचारियों की संख्या 50 से घटकर 30 रह गई, तो अतिरिक्त कार्यभार बिना किसी सपोर्ट के उन्हें और बाकी कर्मचारियों पर डाल दिया गया. नए कर्मचारी नहीं भरे गए और बिना किसी अतिरिक्त समर्थन के कार्यभार बढ़ा दिया गया. भूपेंद्र ने इसे "अधिकार और पहचान के बिना अतिरिक्त दबाव" बताया.
3. करियर में ठहराव
भूपेंद्र को जिस खाता (account) पर काम सौंपा गया था, वह लाभकारी नहीं था, जैसा कि उनके मैनेजर ने भी स्वीकार किया था. इससे उन्हें न तो वेतन वृद्धि मिली, न ही करियर में कोई आगे बढ़ने का मौका. वह बताते हैं, "वह खाता नुकसान में था, जैसा कि मेरे मैनेजर ने स्वीकार किया था. इससे वेतन वृद्धि और करियर ग्रोथ दोनों प्रभावित होते थे. ऐसा लगता था कि मैं एक पेशेवर ठहराव की स्थिति में हूं, जिसमें आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं था."
4. टॉक्सिक क्लाइंट एनवायरनमेंट
ग्राहकों की ओर से तुरंत प्रतिक्रिया की अनिवार्यता ने एक उच्च दबाव का माहौल बना दिया था. मामूली मुद्दों पर लगातार वृद्धि और समस्या समाधान की आवश्यकता ने कर्मचारियों की मानसिक स्थिति पर बुरा असर डाला. भूपेंद्र ने कहा, "यह दबाव हर स्तर पर महसूस किया जाता था, जिससे मानसिक और शारीरिक तनाव बढ़ता था. यह लगातार 'आग बुझाने' की स्थिति की तरह था, जिसमें व्यक्तिगत भलाई के लिए कोई जगह नहीं थी."
5. पहचान का अभाव
हालांकि भूपेंद्र को अपने सहकर्मियों और सीनियर से प्रशंसा मिली, लेकिन यह प्रशंसा किसी भी प्रकार की पदोन्नति, वेतन वृद्धि या करियर की उन्नति में नहीं बदल पाई. भूपेंद्र ने महसूस किया कि उनका कठोर काम सिर्फ शोषण का शिकार हो रहा था, न कि उसे उचित रूप से पुरस्कृत किया जा रहा था.
6. ऑनसाइट अवसरों में क्षेत्रीय भेदभाव
भूपेंद्र ने यह भी बताया कि इंफोसिस में ऑनसाइट (विदेशी शाखाओं में) कार्य की नियुक्ति भाषा के आधार पर की जाती थी, न कि कर्मचारियों की योग्यता पर. वह कहते हैं, "ऑनसाइट अवसर कभी भी merit पर आधारित नहीं थे, बल्कि भाषाई प्राथमिकताओं पर आधारित थे. जो लोग तेलुगू, तमिल या मलयालम बोलते थे, उन्हें प्राथमिकता दी जाती थी, जबकि हिंदी बोलने वाले कर्मचारियों को नजरअंदाज कर दिया जाता था. यह भेदभाव मेरे लिए बेहद निराशाजनक और अन्यायपूर्ण था."
भूपेंद्र का मैसेज
भूपेंद्र ने अपने पोस्ट में साफ तौर पर कहा कि ये समस्याएँ सिर्फ उनके व्यक्तिगत अनुभव नहीं हैं, बल्कि यह उन अनगिनत कर्मचारियों की आवाज़ हैं, जो इस तरह की समस्याओं का सामना करते हैं और अपनी बात नहीं रख पाते. उन्होंने कहा, "मैंने खुद को आत्म-सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह कदम उठाया. एक ऐसे संगठन में काम करना, जो इन बुनियादी मुद्दों की अनदेखी करता है, मेरे लिए असंभव था."
भूपेंद्र ने अंत में यह कहा, "कॉर्पोरेट प्रबंधकों को अब वास्तविकता को नकारना बंद करना होगा और इन समस्याओं का समाधान ढूंढना होगा. कर्मचारी सिर्फ संसाधन नहीं हैं, वे इंसान हैं, जिनकी अपनी आकांक्षाएँ और सीमाएँ होती हैं. अगर इन विषाक्त प्रथाओं को अनदेखा किया जाता है, तो संगठन न सिर्फ अपनी प्रतिभा खो देंगे, बल्कि उनकी विश्वसनीयता भी प्रभावित होगी."
इस कदम से भूपेंद्र ने उन समस्याओं की ओर ध्यान खींचा है जो भारतीय तकनीकी कंपनियों में काम करने वाले कई कर्मचारियों को झेलनी पड़ती हैं. उन्होंने न केवल अपनी आवाज़ उठाई, बल्कि उन तमाम कर्मचारियों का भी समर्थन किया जो शायद अपनी समस्याओं को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं कर सकते.