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Ground Report: जब शिवलिंग के दो टुकड़े करना चाह रहा था अलाउद्दीन खिलजी, फिर क्या हुआ जो बन गया खुद भक्त

Saraneshwar Temple: राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जिसको लेकर दावा किया जाता है कि वहां चमत्कार होते हैं. इस मंदिर में कई ऐसे रहस्य छिपे हुए हैं जिनका जवाब आज तक नहीं मिल सका है. अचंभित करने वाले दावों के बारे में जानने के बाद हमने भी भोलेनाथ के इस मंदिर में पहुंचे. पढ़ें हमारी ग्राउंड रिपोर्ट

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Edited By: Purushottam Kumar
Saraneshwar Temple

हाइलाइट्स

  • सारणेश्वर मंदिर सिरनवा पर्वत के पश्चिम में भगवान शिव को समर्पित है.
  • यहां शंभू के सामने दंडवत हो गया खिलजी

Saraneshwar Temple: देश में कई ऐसे मंदिर, तीर्थ स्थल है जहां कुछ न कुछ अलौकिक है. इन तीर्थस्थलों में बहुत सारे रहस्य छिपे हुए हैं. इन जगहों को लेकर कई ऐसे दावे किए जाते हैं जिन पर भरोसा करना आसान नहीं होता है. राजस्थान में भी एक ऐसा मंदिर है जिसको लेकर दावा किया जाता है कि वहां चमत्कार होते हैं. इस मंदिर में कई ऐसे रहस्य छिपे हुए हैं जिनका जवाब आज तक नहीं मिल सका है. अचंभित करने वाले दावों के बारे में जानने के बाद हमने भी भोलेनाथ के इस मंदिर में जाने का प्रण किया. उदयपुर से करीब 150 किलोमीटर और जोधपुर से 198 किलोमीटर की दूरी पर है राजस्थान के सिरोही जिले में सारणेश्वर शिव मंदिर स्थित है. 

सारणेश्वर मंदिर सिरनवा पर्वत के पश्चिम में भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर के कई किस्से प्रचलित हैं. यह मंदिर दो प्रांगणों से घिरा हुआ है. एक मुख्य मंदिर से जुड़ा है दूसरा पूरे क्षेत्र के चारों ओर टावरों और चौंकियों के साथ जुड़ा है. मंदिर के मुख्य द्वार पर विशालकाय हाथियों की मूर्तियां हैं जो चूने और ईंट से बनी हैं जिन्हें रंगीन रूपांकनों से चित्रित किया गया है. इस मंदिर का परिवेश प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है जो अध्यात्म से जुड़ा विहंगम संगम है. मंदिर परिसर में प्रवेश के साथ ही पक्षियों की चहचहाहट कानों में मधुर संगीत घोलती है जो मन को आनंदित करती है. इस मंदिर का वातावरण अलौकिक है. जो मन के भीतर के उथल-पुथल को शांत करता है और आधुनिकता से अध्यात्म की ओर खींच लाता है. मंदिर परिसर में ही एक प्राचीन वैदनाथ मंदिर है. सारणेश्वर शिवलिंग की स्थापना से पहले से ही जिसमें शिव विराजमान है. इस मंदिर के आगे पीपल के पेड़ के नीचे एक चमत्कारी पत्थर है. इस पत्थर पर डाला गया पानी शरीर पर लगाने से पुराने से पुराना अंदरूनी दर्द हर जाता है. आदमी स्वस्थ हो जाता है...

शिव दरबार में भक्तों की भारी भीड़

इस मंदिर में जब हम पहुंचे तो ना कोई त्यौहार था और ना ही कोई विशेष तिथि इसके बाद भी यहां भक्तों की भारी भीड़ नजर आई. इन मंदिर में हमने जब लोगों से बातचीत की तो पता चला कि यहां सच्चे मन से आने वाले सभी भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. लोगों से बातचीत करने के बाद ये तो पता चल चुका था कि इस मंदिर के प्रति लोगों में बड़ी आस्था है.. कुछ ऐसा अलौकिक तो जरूर है जिसके आगे सभी नतमस्तक हैं. हमने जिस किसी से भी बात की उसने खिलजी से जुड़ा किस्सा जरूर सुनाया. आक्रांता खिलजी के शिव को नमन करने की कहानी जरूर सुनाई.

शंभू के सामने दंडवत कैसे हो गया खिलजी

जो खिलजी शिवलिंग के टुकड़े करने दिल्ली से सिरोही पहुंचा था वह शंभू के सामने दंडवत कैसे हो गया. खिलजी से जुड़े इस वृतांत को जानने की उत्सुकता अब बढ़ गई थी.  जिस खिलजी को लेकर कहा जाता है कि उसने कई शिव मंदिर तोड़े, उसे ऐसी कौन सी अलौकिक शक्ति ने मंदिर की चौखट पर माथा टेकने को मजबूर किया. मंदिर के अंदर ऐसा क्या है जिसके सामने खूंखार मुस्लिम सुल्तान बेबस हो गया.  खिलजी कांड का वर्णन कई लेखों में भी मिला जिसमें एक चमत्कारी कुंड का भी जिक्र आया. अब इस चमत्कारी कुंड और खिलजी से जुड़ी कहानी को जानने-समझने के लिए लिए हम मंदिर के अंदर दाखिल हुए. 

सिरोही में स्थापित किया गया था शिवलिंग

भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने के बाद हमने मंदिर के पुजारियों से बात शुरू की. पुजारियों ने जो बताया जो दिखाया उसे सुनकर और देखकर हमने भी दांतों तले उंगली दबा ली. पुजारी जैसे जैसे मंदिर से जुड़ी कहानियां बता रहे थे उनकी आंखों में शिव-शंभू के प्रति आस्था, विश्वास साफ साफ झलक रहा था. 1298 में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात के सिद्धपुर के रुद्रमालका महादेव मंदिर को तहस नहस कर दिया था और वहां के शिवलिंग को गाय की खाल में बांधकर सिरोही के रास्ते लौटा लेकिन सिरोही के महाराव ने उसे आगे नहीं जाने दिया और युद्ध में हराकर शिवलिंग को सिरोही में ही स्थापित किया.

खिलजी ने कुंड के जल से किया स्नान

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान था तो इतनी आसानी से वो अपनी इस हार को भुला नहीं पाया वो बदला लेने के लिए 9 महीने बाद फिर से लौटा. खिलजी ये प्रण करके कई गुना बड़ी सेना लेकर आया था कि वो सिरोही के महाराव का सिर कलम करेगा और शिवलिंग को खंड खंड करेगा लेकिन इस बार भी उसकी हार हुई और वो महादेव के प्रकोप का भी भागी बना उसे कोढ़ हो गया. खिलजी की पूरी सेना बीमार हो गई थी. मरने की कगार पर पहुंच चुकी थी लेकिन तभी उसे मंदिर में होने वाले चमत्कार के बारे में पता चला. उसने गोकर्ण कुंड से जल मंगाकर सवा महीने स्नान किया और ठीक होकर सारणेश्वर शिवलिंग को नमन कर वापस दिल्ली लौट गया.

कुंड को लेकर कई दावे 

कुंड को लेकर जितने दावे किए जा रहे थे उसकी पड़ताल के लिए हमने मंदिर के एक पुजारी को साथ लेकर कुंड तक जाने का फैसला लिया. एक संकरी जगह से होते हुए कुंड तक जाना पड़ा. जहां पर पूरे साल किसी स्त्रोत से पानी आता रहता है. कुंड के पास पहुंचने पर हमें ये इतना बड़ा नहीं लगा. साथ आए पुजारी ने बताया कि इस कुंड में हमेशा पानी रहता है चाहे कितना भी अकाल पड़ा हो. इस कुंड का पानी भी गंगा की तरह पवित्र है जिसमें कोई भी जीवाणु-कीटाणु नहीं पड़ते. कुंड में पानी कहां से आता है इसके बारे में किसी को नहीं पता लेकिन लोगों में इसको लेकर बहुत विश्वास है. लोगों की आस्था इससे जुड़ी है. इस कुंड के पानी को लेकर दावा ये भी किया जाता है कि भारत में ये एकमात्र कुंड है जिसके पानी में अस्थियां रखने पर 15 दिन में गल जाती हैं.

मंदिर का नाम सारणेश्वर कैसे पड़ा

खिलजी से जिस दिन राजपूत राजाओं ने युद्ध लड़कर रुद्रमाल शिवलिंग वापस लिया था वो दिन दीपावली का था. उसी दिन सिरणवा पहाड़ के पवित्र शुक्ल तीर्थ के सामने स्थापित कर दिया गया था और मंदिर का नाम सारणेश्वर रखा गया क्योंकि युद्ध में बहुत तलवारें चलीं उसी के कारण मंदिर की स्थापना हुई. क्षारणेश्वर मंदिर अब सारणेश्वर मंदिर कहा जाने लगा. लेकिन इसके प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ती गई. कुंड के पानी से चर्म रोग का इलाज होने के किस्से आम हो गए जिसके दावे अभी भी किए जाते हैं. कुंड के पानी में ऐसा क्या है जिससे चर्म रोग ठीक होता है. कोई वैज्ञानिक साक्ष्य तो मौजूद नहीं है ना ही हमें कोई ऐसा रोगी मिला जिसका चर्म रोग ठीक हुआ हो लेकिन जितनी आस्था सारणेश्वर मंदिर के प्रति मिलती है वो अद्भुत है. इसी के साथ हमारी पड़ताल पूरी हो चुकी थी.दिर के प्रति मिलती है वो अद्भुत है. इसी के साथ हमारी पड़ताल पूरी हो चुकी थी.