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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में सिर पर फसल उगाने से लेकर 45 किलो के रुद्राक्ष पहनने वाले बाबा, जानें क्यों हैं खास?

महाकुंभ 2025 एक विशाल धार्मिक आयोजन है, जो साधना, तपस्या और आध्यात्मिक समर्पण का अद्वितीय उदाहरण पेश करता है. यहां आने वाले प्रत्येक साधु और योगी की जीवन यात्रा और साधना एक प्रेरणा का स्रोत है.

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Edited By: Mayank Tiwari
महाकुंभ में 'रुद्राक्ष बाबा' के नाम से मशहूर संन्यासी गीतानंद महाराज
Courtesy: Social Media

Mahakumbh 2025: प्रयागराज के पवित्र संगम तट पर महाकुंभ 2025 का आयोजन एक अनोखे धार्मिक मिलन का गवाह बन रहा है. जहां आस्था, भक्ति का अद्वितीय संगम हो रहा है. इस विशाल धार्मिक मेला में सैकड़ों साधु-संत और भक्त एकत्रित हो रहे हैं, लेकिन इन सब में कुछ विशेष साधु और योगी हैं, जिनकी साधना और तपस्या ने इस महाकुंभ को और भी रहस्यमयी बना दिया है. वहीं, उत्तर प्रदेश का प्रयागराज महाकुंभ 2025 के भव्य आयोजन के लिए लाल कालीन बिछा रहा है.

संतों और भक्तों के इस सागर के बीच, मनीषियों और तपस्वियों का एक अनूठा समूह भी मौजूद है, जिनके रहस्यमयी स्वरूप और असाधारण अनुष्ठानों ने उन्हें इस धार्मिक समागम में आकर्षण का केन्द्र बना दिया है, जिससे इस विशाल आयोजन में एक विविध आध्यात्मिक सार जुड़ गया है.

रुद्राक्ष बाबा: 1.25 लाख रुद्राक्षों के साथ एक अनोखा तपस्वी

महाकुंभ में सबसे आकर्षक चेहरा 'रुद्राक्ष बाबा' यानी साधु गीतानंद महाराज का है. वे पिछले छह वर्षों से अपने सिर पर 1.25 लाख रुद्राक्ष पहनते हैं, जिनका वजन 45 किलो है. इन रुद्राक्षों को उनके भक्तों ने भेंट किया है, जो उनकी आस्था और भक्ति का प्रतीक हैं. पंजाब के कोट का पुरवा गांव से ताल्लुक रखने वाले साधु गीतानंद महाराज ने 12-13 साल की उम्र में सन्यास लिया था. उनका जीवन कठोर साधना और तप से भरा हुआ है.

गोपाल गिरी और नगर जीतू गिरी: युवा साधु जो बने आकर्षण का केंद्र 

महाकुंभ में युवा साधु गोपाल गिरी और नगर जीतू गिरी भी एक विशेष स्थान रखते हैं. गोपाल गिरी ने 7-8 साल की उम्र में सन्यास लिया था और वे कठोर तप और साधना में लीन रहते हैं. उनके अद्वितीय साधना पथ ने उन्हें हर किसी का ध्यान आकर्षित किया है. इतनी कम उम्र के बावजूद, ध्यान और तपस्या के प्रति उनका समर्पण सभी को चकित कर देता है.

खड़ेश्वरी बाबा: 14 वर्षों से एक पैर पर तपस्या

12 साल की उम्र में संन्यास लेने वाले योगी राजेंद्र गिरी बाबा पिछले 14 सालों से श्री पंचदास नाम जूना अखाड़े में एक पैर पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हैं. अपनी इसी कला के कारण उनका नाम बदलकर 'खड़ेश्वरी बाबा' कर दिया गया. 12 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने गुरु से संन्यास की दीक्षा ले ली थी. छह साल की तपस्या के बाद उन्होंने लोगों की भलाई के लिए हठ योग की शुरुआत की.बाबा खड़ेश्वरी के अनुसार गुरु महाराज से दीक्षा लेने के बाद उन्होंने मानव कल्याण के लिए हठ योग की साधना की. उनका यह तप यज्ञ छह वर्षों का है.

चाबी वाले बाबा: मानसिक दरवाजों की खोलने वाले बाबा

चाबी वाले बाबा, हरिशचंद्र विश्वकर्मा, जो 20 किलो वज़नी चाबियां अपने साथ रखते हैं. उनका मानना है कि उनकी चाबी "हमारे मन के अंदर के दरवाजों को खोलती है, जो हमें आध्यात्मिक ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करती है. समाज में फैली बुराइयों और नफरत के खिलाफ लड़ने के लिए 16 साल की उम्र में ही बाबा ने घर छोड़ दिया था और देशभर में पदयात्रा की. स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले बाबा कहते हैं कि आध्यात्मिकता मनुष्य के भीतर है और इसे समझने के लिए आत्मचिंतन जरूरी है.

नागा साधु प्रमोद गिरी महाराज: बर्फीले पानी से स्नान

नागा साधु प्रमोद गिरी महाराज का विशेष ध्यान आकर्षित करता है. वे हर सुबह 61 बर्तन बर्फीले पानी से स्नान करते हैं और इसके बाद आग के पास ध्यान लगाते हैं. उनकी यह साधना 9 वर्षों से चली आ रही है. कठोर हठ योग अभ्यास से जुड़े महाराज इन तपस्याओं को मानवता और समाज के कल्याण के लिए समर्पित करते हैं.

अनाज वाले बाबा: सिर पर उगाए गए अनाज से एक अनोखी साधना

सोनभद्र के 'अनाज वाले बाबा' के नाम से मशहूर अमरजीत पिछले 14 सालों से हठ योग के तौर पर अपने सिर पर गेहूं, चना और बाजरा जैसी फसलें उगा रहे हैं. हरियाली और विश्व शांति का संदेश फैलाने वाले बाबा मौनी अमावस्या पर इन फसलों को काटकर प्रसाद के तौर पर बांटने की योजना बना रहे हैं, जो पुण्य का प्रतीक है. भक्त उनकी अनोखी साधना से मोहित हो जाते हैं, अक्सर सेल्फी लेते हैं और उनके पर्यावरण के प्रति जागरूक संदेश की सराहना करते हैं.

विकल्प के बिना तपस्या: राधे पुरी बाबा और उनका असाधारण संकल्प

राधे पुरी बाबा ने 2011 से अपना दाहिना हाथ उठाकर रखा है, जो दुनिया की भलाई का प्रतीक बन चुका है. उनका हाथ अब लकवाग्रस्त हो चुका है, लेकिन उनका संकल्प कभी नहीं टूटा.