जब पूरी दुनिया नीरज चोपड़ा को भाला फेंकते हुए ओलंपिक में इतिहास रचते देख रही थी, उस वक्त बहुत कम लोग जानते थे कि वह एक और बड़ी चुनौती से जूझ रहे थे. वो चुनौती अंग्रेज़ी भाषा थी. छोटे से गांव से निकला यह खिलाड़ी, जिसने कभी अंग्रेज़ी नहीं बोली थी, आज पूरी दुनिया के सामने आत्मविश्वास से इंटरव्यू देता है. लेकिन यह सफर आसान नहीं था। नीरज ने यह भाषा किताबों या क्लासरूम से नहीं, बल्कि मोबाइल ऐप और अपनी मेहनत से सीखी है.
नीरज चोपड़ा की अंग्रेज़ी सीखने की शुरुआत कोचों की बातों को ध्यान से सुनने से हुई. उन्होंने कभी कोई फॉर्मल क्लास नहीं की, न ही किसी ट्यूटर की मदद ली. जब भी समय मिलता, वह अपने फोन में Duolingo ऐप का इस्तेमाल करते. नीरज कहते हैं, "शुरुआत में डर लगता था, पर मैंने रुकना नहीं चुना. रोज़ थोड़ा-थोड़ा बोलने की कोशिश करता रहा." उनके लिए यह सफर केवल भाषा सीखने का नहीं, आत्मविश्वास हासिल करने का भी था.
अंतरराष्ट्रीय कोचों और खिलाड़ियों के साथ रहते हुए नीरज को अलग-अलग भाषाओं का एक्सपोजर मिला. जर्मन से लेकर स्वीडिश तक, उन्होंने कोशिश की कि उनके साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए कुछ शब्द सीखें. एक बार उन्होंने पूरे आत्मविश्वास से एक कोच को जर्मन में 'हैलो' कहा, लेकिन जब सामने वाले ने धाराप्रवाह जवाब दिया, तो घबरा कर अंग्रेज़ी में लौट आए. यह किस्सा उन्होंने हंसी के साथ साझा किया और यह साबित किया कि गलती करना भी सीखने का हिस्सा है. वो भी सिर्फ आम इंसान के लिए नहीं बल्कि वर्ल्ड चैंपियंस के लिए भी.
नीरज चोपड़ा ने सिर्फ भाषा सीखने की बात नहीं की, बल्कि उन्होंने उन छात्रों को भी संदेश दिया जो विदेश में पढ़ने या कुछ बड़ा करने का सपना देखते हैं. उन्होंने कहा- "मैं एक छोटे गांव से आता हूं. मेरा सपना था भारत का प्रतिनिधित्व करना. शुरुआत में सब मुश्किल लगा, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी." उन्होंने कहा कि सपनों को दिल में छुपाकर मत रखो, उन्हें बोलो, उन पर विश्वास करो और दूसरों को भी उनमें यकीन दिलाओ. सफलता एक दिन में नहीं मिलती, लेकिन लगातार प्रयास और धैर्य से सब कुछ संभव है.