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65 साल पहले लापता हुए परमाणु बम की कहानी जिसकी वजह से आज तक सहमा हुआ है अमेरिका

Atomic Bomb: 5 फरवरी 1958 को ट्रेनिंग के दौरान दो अमेरिकी विमान आपस में टकरा गए थे. टकराने के बाद उनमें से एक बमवर्षक विमान ने अपना परमाणु बम समुद्र में गिरा दिया था ताकि वह सुरक्षित लैंड कर सके.

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Sagar Bhardwaj
65 साल पहले लापता हुए परमाणु बम की कहानी जिसकी वजह से आज तक सहमा हुआ है अमेरिका

Atomic Bomb: 5 फरवरी 1958 को ट्रेनिंग के दौरान दो अमेरिकी विमान आपस में टकरा गए थे. टकराने के बाद उनमें से एक बमवर्षक विमान ने अपना परमाणु बम समुद्र में गिरा दिया था ताकि वह सुरक्षित लैंड कर सके. इसके बाद उस बम की खोज दो महीने तक चली लेकिन उस परमाणु बम का कोई पता नहीं चला.

शीत युद्ध की निशानी था यह बम

इस हादसे के करीब 40 साल बाद एक रिटायर्ड एयर फोर्स अधिकारी स्टीफन श्वार्टज ने इस परमाणु बम की खोज शुरू की. उन्होंने अपनी किताब एटॉमिक ऑडिट: द कोस्ट एंड कॉन्सीक्वेंसेज ऑफ यूएस न्यूक्लियर वेपंस सिंस 1940 में लिखा कि वह बम शीत युद्ध की निशानी था.

बम न गिराते तो बर्बाद हो जाता पूरा शहर

दरअसल पूरा मामला ये है कि 5 फरवरी 1958 को अमेरिकी वायुसेना के दो विमान ट्रेनिंग के दौरान आपस में टकरा गए थे. उनमें से एक बमवर्षक विमान था. उस समय अमेरिका में ट्रेनिंग के दौरान भी विमानों को पूरी तरह से हथियारों से लोड रखा जाता था.

विमानों को बमों से लोड रखा जाता था. बमों को कैसे गिराना है ट्रेनिंग में इस बात की जानकारी दी जाती थी. हुआ ये कि 5 जनवरी 1958 को मेजर होवार्ड रिचर्डसन B-47 बमवर्षक विमान से उड़ान भर रहे थे. उनका मिशन पूरा हो चुका था. तभी एक दूसरा लड़ाकू विमान जेट F-86,जो एक इंटरसेप्टर था, उसे लेफ्टिनेंट क्लेरेंस स्टीवर्ट उड़ा रहे. स्टीवर्ट के रडार ने रिचर्डसन के विमान को नहीं पकड़ा और उनका विमान बी-47 से टकरा गया.

स्टीवर्ट समय रहते विमान से बाहर निकलने में सफल रहे लेकिन रिचर्डसन ऐसा नहीं कर पाए. रिचर्डसन जानते थे कि परमाणु बम जितना वजन लेकर एयरफोर्स बेस के निर्माणाधीन रनवे पर उतरना मुश्किल होगा. इसलिए उन्होंने विमान को समुद्र की ओर मोड़ लिया.

इसके बाद रिचर्डसन ने 7200 फीट की ऊंचाई से ही परमाणु बम को समुद्र में गिरा दिया और फिर सुरक्षित लैंड कर गए. रिचर्डसन ने साल 2004 में एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें बम को गिराने का दुख था लेकिन उनके पास और कोई चारा नहीं था. अगर वह ऐसा नहीं करते तो पूरा एयरबेस और शहर बर्बाद हो जाता.

100 नौसैनिक गोताखोरों ने 2 महीने तक की बम की खोज

अमेरिकी नौसेना के 100 गोताखोरों ने 2 महीने तक हैंडहेल्ड सोनार लेकर इस परमाणु बम की खोज की लेकिन वह नहीं मिला. 16 अप्रैल 1958 को अमेरिकी सेना ने घोषणा कर दी कि बम लापता हो चुका है. एयरफोर्स ने बयान दिया कि यह बम पूरी तरह से असेंबल नहीं था इसलिए किसी तरह के विस्फोट होने या रेडियोएक्टिव पदार्थ के रिसाव की आशंका नहीं है.

इस घटना के बाद न्यूक्लियर बमों को सील किया जाने लगा. प्लूटोनियम को बम से अलग रखा जाने लगा क्योंकि ये दोनों एक साथ मिलकर ही घातक होते हैं.

2004 में फिर शुरू हुई इस बम की खोज

साल दर साल गुजरते गए. इसके बाद साल 2000 में पूर्व एयरफोर्स ऑफिसर डेरेक ड्यूक ने बम की खोज के लिए  जॉर्जिया के सांसद जैक किंग्स्टन के संपर्क किया.

किंग्स्टन ने कहा कि यदि एयरफोर्स इस बम को खजना चाहती है तो खोज ले लेकिन इस अभियान में 50 लाख डॉलर का खर्च आएगा. उन्होंने कहा कि इसके बाद भी बम मिलेगा या नहीं कहा नहीं जा सकता. किंग्स्टन ने कहा कि यह भी हो सकता है कि यह बम छूते ही फट पड़े क्योंकि इतने सालों में बम में जंग लग गई होगी और उसके अंदर रखा परमाणु हथियार रेडिएशन फेंक रहा होगा. ऐसे में उसके पास जाना खतरनाक हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा.

2001 में अमेरिकी एयरफोर्स ने कहा कि  7600 वजन के इस बम में 400 पाउंड पारंपरिक हथियार है. डेरेक ड्यूक ने 2004 में इस बम को खोजना शुरू किया लेकिन लाख कोशिश को बाद भी वह बम को खोजने में असफल रहे.

बम न मिलने से आज तक सहमा है अमेरिका

एक दशक के बाद 2015 में एक अन्य नागरिक ने एक विचित्र सोनार रीडिंग्स दिखाई दी. न्यूक्लियर इमरजेंसी सपोर्ट टीम ने कहा कि हम इसकी जांच करेंगे. इसके बाद बम की खोज के लिए ऑपरेशन स्लीपिंग डॉग चलाया गया. मिलिट्री के गोताखोरों ने समुद्र में खोजी अभियान चलाया लेकिन वो इस 12 फीट लंबे बम को खोज नहीं पाए. इसके बाद अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने  बम को खोजने की एक और कोशिश की लेकिन वह भी असफल रहा. 

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