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श्रीलंका का सबसे भरोसेमंद दोस्त है भारत, संकट में हमेशा निभाया साथ

श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष अभयवर्धने ने भारत को धन्यवाद दिया अपने संबोधन में भारत को श्रीलंका का सबसे बड़ा सहयोगी देश बताया.उन्होंने कहा कि भारत द्वारा ऋण पुनर्गठन में मदद के चलते श्रीलंका को 6 महीने तक जीवित रहने में मदद मिली.

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Mohit Tiwari
Last Updated : 12 July 2023, 11:59 PM IST
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नई दिल्लीः श्रीलंका, हिन्द महासागर में भारत का अहम पड़ोसी देश है. जब-जब श्रीलंका पर संकट आया है, भारत ने अपने पड़ोसी होने के कर्तव्य को बखूबी निभाया है. पिछले साल भी जब श्रीलंका अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उस वक्त भी भारत ने दिल खोलकर उसकी मदद की थी. भारत श्रलंका का सबसे बड़ा सहयोगी देश रहा है और हर संकट में हमारा साथ दिया है. यह बातें  श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष अभयवर्धने ने अपने संबोधन के दौरान कहीं.

ऋण पुनर्गठन में की मदद
अभयवर्धने अपनी स्पीच में कहा कि भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में उनका सबसे करीबी सहयोगी रहा है. उन्होंने आगे कहा भारत श्रीलंका के कर्ज के पुनर्गठन को 12 साल तक आगे बढ़ाने के लिए सहमत हो गया है. उन्होंने भारत को धन्यवाद देते हुए कहा कि कभी इस तरह की उम्मीद नहीं थी और न ही इतिहास मे भी कभी किसी देश ने इस तरह की मदद श्रीलंका को दी हो. भारत की इसी मदद के चलते श्रीलंका को 6 महीने तक जीवित रहने में मदद मिली.


श्रीलंका की मदद जारी रखेगा भारत

श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष के इस रुख के बाद भारत की ओर से भी कहा गया है कि वित्तीय संकट से उबरने में श्रीलंका की मदद करना जारी रखेंगे. कोलंबो में निर्माण, बिजली और ऊर्जा एक्सपो 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए भारत के उप उच्चायुक्त विनोद के जैकब ने ये बातें कही. उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच हाल में संबंध गहरे हुए हैं और इससे  दोनों देशों के बीच दोस्ती और व्यापक सहयोग मजबूत हुआ है.

आर्थिक परेशानियां बनीं राजनीतिक संकट
श्रीलंका में आर्थिक कठिनाइयां राजनीतिक संकट में तब्दील हो गई. राजपक्षे परिवार के खिलाफ श्रीलंकाई लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. मई 2022 की शुरुआत में महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालात इतने बुरे हो गए थे कि लाखों  प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरकर अपना विरोध जताया. हालात इस कदर खराब हो गए थे कि प्रदर्शनकारियों ने ने राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर हमला बोलकर उस पर कब्जा जमा लिया था.

 

चीन के कर्ज ने खस्ता की हालत

श्रीलंका में चीनी कर्ज का हिस्सा 1990 के दशक के अंत में सिर्फ़ 0.3% था. लेकिन 2000 के बाद से ही श्रीलंका के कर्ज में हिस्सेदारी लगातार बढ़ने लगी. 2016 में चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 16% हो गई.   2022 के अंत तक श्रीलंका में चीनी कर्ज का भंडार 7.3 अरब अमेरिका डॉलर तक जा पहुंचा था.

 

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