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India Daily

मां के खोक में पल रहे बच्चे को भी इस देश में मिलती है सजा, जन्म के बाद भी जेल में कटती है पूरी जिंदगी

एक ऐसा देश जहां गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जेल की सजा होती है. इतना ही नहीं पैदा होने के बाद भी पूरी लाइफ कारावास में काटनी पड़ती है.

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Edited By: Reepu Kumari
Abortion laws in El Salvador
Courtesy: Pinteres

Abortion laws in El Salvador: अल सल्वाडोर, मध्य अमेरिका का एक छोटा सा देश, अपने कठोर कानूनों और न्यायिक प्रणाली के लिए कुख्यात है. यहां के कानूनों का सबसे विवादास्पद पहलू महिलाओं के अधिकारों और गर्भपात (एबॉर्शन) से जुड़ा है. इस देश में गर्भपात पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, भले ही वह बलात्कार, इंसेस्ट (निकट संबंधी से गर्भधारण), या मां के जीवन के लिए खतरा होने पर भी क्यों न हो. 

कानून की सख्ती और उसके परिणाम

अल सल्वाडोर का गर्भपात कानून इतना कठोर है कि यदि गर्भवती महिला का गर्भ किसी भी कारण से गिरता है, तो उसे 'गर्भपात के आरोप' में जेल भेज दिया जाता है. यहां तक कि प्राकृतिक गर्भपात (मिसकैरेज) के मामलों में भी महिलाओं को हत्या का दोषी ठहरा दिया जाता है. इसके परिणामस्वरूप कई महिलाएं दशकों तक जेल में रहने को मजबूर हैं.

इस सख्त कानून का असर सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि उनके अजन्मे बच्चों पर भी पड़ता है. यदि महिला जेल में गर्भवती हो जाती है, तो उसका बच्चा भी जन्म के बाद अपनी मां के साथ जेल में ही रहता है. ये बच्चे अपनी शुरुआती जिंदगी जेल की दीवारों के भीतर बिताते हैं, जहां उनका विकास बाधित हो सकता है.

मानवाधिकार संगठनों का विरोध  

अल सल्वाडोर के इस कानून की दुनियाभर में आलोचना होती है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह कानून न केवल महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि उनके बच्चों को भी सजा भुगतने पर मजबूर करता है. इस कानून के कारण महिलाएं अपने स्वास्थ्य और जीवन के लिए जरूरी चिकित्सा सहायता लेने से भी डरती हैं.

न्याय व्यवस्था में सुधार की मांग  

हाल के वर्षों में, अल सल्वाडोर में इस मुद्दे पर बहस तेज हुई है. कई महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा को देखते हुए, सरकार से कानूनों में सुधार की मांग की जा रही है. कुछ मामलों में, अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण महिलाओं की सजा को माफ किया गया है, लेकिन ये घटनाएं अपवाद हैं.

अल सल्वाडोर में गर्भपात कानून और इसके प्रभाव महिलाओं और उनके बच्चों के लिए एक गंभीर मुद्दा है. इस कानून को मानवीय दृष्टिकोण से बदलने की जरूरत है ताकि महिलाएं और उनके बच्चे सम्मानजनक जीवन जी सकें. सुधार की दिशा में कदम उठाने से ही इस देश में न्याय और समानता की स्थापना हो सकती है.