Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है और सड़क या रेलवे ट्रैक पर अतिक्रमण करने वाले किसी भी धार्मिक ढांचे को चाहे वह मंदिर हो या दरगाह हटाया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान पर उसके निर्देश किसी भी धर्म पर ध्यान दिए बिना होंगे.
सुप्रीम कोर्ट अपराध के आरोपी लोगों के विरुद्ध बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इस कदम को अक्सर 'बुलडोजर न्याय' कहा जाता है. सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा, 'हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमारी दिशा सभी के लिए होगी, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो. यदि सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर, यह जनता के लिए बाधा नहीं बन सकती.'
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या जल निकायों पर अतिक्रमण के मामलों को छोड़कर, पूर्व न्यायिक अनुमति के बिना पूरे देश में तोड़फोड़ पर रोक लगा दी थी. सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में इस बात पर जोर दिया कि सार्वजनिक सुरक्षा सड़कों, जल निकायों या रेल पटरियों पर अतिक्रमण करने वाले धार्मिक ढांचों से अधिक महत्वपूर्ण है. न्यायालय ने भारत की धर्मनिरपेक्ष स्थिति की पुष्टि की, तथा इस बात पर जोर दिया कि बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान पर उसके निर्देश सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे, चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो.
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की दो सदस्यीय पीठ ने अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की. न्यायमूर्ति गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि चाहे मंदिर हो, दरगाह हो, उसे जाना ही होगा...जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है.
यह चलन कई राज्यों में लोकप्रिय हो गया है, जहां अब अपराध के आरोपी लोगों से जुड़ी इमारतों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया गया है. इस प्रथा ने किसी खास समुदाय या धर्म के खिलाफ लक्षित विध्वंस के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मामले में आरोपी होना बुलडोजर कार्रवाई को उचित नहीं ठहराता, चाहे वह बलात्कार या आतंकवाद जैसे गंभीर अपराध ही क्यों न हों. मेहता ने पूर्व सूचना के महत्व पर जोर देते हुए सुझाव दिया कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इसे पंजीकृत डाक के माध्यम से जारी किया जाना चाहिए.
विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 17 सितंबर को अंतरिम आदेश पारित किया कि देश में उसकी अनुमति के बिना किसी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा.