नई दिल्ली: ओबीसी ग्रुप के उप वर्गीकरण के लिए गठित रोहिणी आयोग ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. दरअसल केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में 3000 जातियां हैं. लेकिन कुछ जातियां ही ऐसी है जो फिलहाल ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा पा रही हैं. ऐसे में आरक्षण को उप वर्गीकरण में बांटने को लेकर बहस होती रहती है ताकि इसका लाभ सभी जातियों को बराबर मिल सके.
अब जब इस आयोग ने राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंप दी है तो ऐसे में इसके सभी पक्षों पर चर्चा होना लाजिमी है. इनमें एक पक्ष जो बेहद अहम है वो है इसका राजनीतिक पक्ष. ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले सभी सियासी दल अपने-अपने तरीके से वोटर्स को अपनी तरफ करने की कोशिश में जी जान से जुटे हुए है.
यह रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ऐसे समय में सौंपी गई है जब विपक्ष लगातार जाति जनगणना की मांग पर अड़ा हुआ है. 26 दलों की विपक्षी पार्टियों का गठबंधन INDIA अगले आम चुनाव में बीजेपी को करारी मात देने के लिए पिछड़ी और अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने का हर संभव प्रयास करती हुई नजर आ रही है.
2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से लेकर INDIA गठबंधन समेत सभी पार्टियां अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों को अपनी तरफ करने की कोशिश में लगी हुई है. भारत में लगभग 40 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी मतदाता हैं और चुनाव से पहले कोई भी पार्टी इस वोट बैंक को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती है.
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लेकर सामाजिक न्याय मंत्रालय का मानान है कि "इस आयोग को ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करने और किसी भी दोहराव, अस्पष्टता, स्पेलिंग या ट्रांसस्क्रिप्शन जैसी त्रुटियों में सुधार की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था. इसके अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण के लाभों के असमान वितरण की सीमा की जांच करना और ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तंत्र, मानदंड और पैरामीटर आयोग को काम करना था. उप-वर्गीकरण के पीछे का आइडिया हर ब्लॉक के लिए आरक्षण प्रतिशत को सीमित करके ओबीसी वर्ग की कमजोर जातियों मजबूत समुदायों के बराबर लाना है"
यह भी पढ़ें: "चयन समिति के प्रस्ताव में सांसदों के हस्ताक्षर की जरुरत नहीं", पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने दिया बड़ा बयान