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ड्राइवर की इस गलती के कारण भारत में हर साल चली जाती है 10 हजार लोगों की जान

सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में ड्राइवरों के अपने वाहनों पर नियंत्रण खोने के कारण दुर्घटनाओं की संख्या में पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई. इस तरह के हादसों में लगभग 9,862 लोगों की जान गई. 2023 के आंकड़े अगले सप्ताह जारी होने की उम्मीद है और यह अनुमान है कि यह संख्या 10 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है.

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Edited By: India Daily Live
Almora bus accident

Road Accidents: हाल ही में उत्तराखंड के अलमोड़ा में हुई बस दुर्घटना में 36 लोगों की जान जाने की घटना ने सड़क सुरक्षा की गंभीर कमियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है. देश में बसों की दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जो यातायात सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन चुकी हैं.

दुर्घटनाओं का बढ़ता ग्राफ

सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में ड्राइवरों के अपने वाहनों पर नियंत्रण खोने के कारण दुर्घटनाओं की संख्या में पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई. इस तरह के हादसों में लगभग 9,862 लोगों की जान गई. 2023 के आंकड़े अगले सप्ताह जारी होने की उम्मीद है और यह अनुमान है कि यह संख्या 10 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है.

अप्रशिक्षित ड्राइवर और ओवरलोडिंग
अधिकांश दुर्घटनाएं उन ड्राइवरों की कमी से जुड़ी हैं, जो पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होते हैं. सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ अनुराग कुलश्रेष्ठ का कहना है कि यह दुर्घटना दुखद तो है, लेकिन इसके कारण वही हैं जो पहले भी समझे जा चुके हैं. सुरक्षा मानकों की अनदेखी और क्षमता से अधिक भार लाना ऐसे कारक हैं, जो बसों के संतुलन और गति को प्रभावित करते हैं.

यदि उत्तराखंड की दुर्घटना में बस में क्षमता से अधिक यात्री थे, तो इससे स्पष्ट है कि इससे वाहन की संतुलन क्षमता पर बुरा असर पड़ा. 2022 में बसों से जुड़ी 5,000 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1,798 लोगों की जान गई. रिपोर्ट के अनुसार, बसों का दुर्घटनाओं में हिस्सा 40.9 प्रतिशत है, जबकि उनमें होने वाली मौतों का प्रतिशत 28.7 है.

चालक की थकान और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य
उत्तराखंड की घटना में प्रारंभिक जांच से यह सामने आया है कि चालक को झपकी आ गई थी, जिससे उसने वाहन पर नियंत्रण खो दिया. यह एक सामान्य समस्या है, लेकिन इसके समाधान के लिए अभी तक ठोस उपाय नहीं किए जा सके हैं. कुलश्रेष्ठ ने बताया कि उनके संगठन ने पिछले साल गुरुग्राम में 100 से अधिक ड्राइवरों के स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक स्तर की जांच की, जिसमें से आधे से अधिक ड्राइवर उच्च रक्तचाप या मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रसित पाए गए.

इन ड्राइवरों की कार्य स्थितियां पेशेवर रूप से अनुकूल नहीं हैं, जिससे जोखिम भरे क्षेत्रों में वाहन चलाना खतरनाक साबित होता है. समस्या यह भी है कि कई चालक बिना वैध लाइसेंस के वाहन चला रहे हैं. ऐसे चालकों की वजह से लगभग 12 प्रतिशत दुर्घटनाएं होती हैं.

इन सभी पहलुओं से यह स्पष्ट होता है कि सड़क सुरक्षा को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. प्रशिक्षित ड्राइवरों की कमी, ओवरलोडिंग, और थकान जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार और संबंधित संस्थाओं को मिलकर प्रयास करने होंगे. तभी हम सड़क पर होने वाली अनावश्यक मौतों को कम कर सकेंगे.