Madhya Pradesh Elections 2023: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं. विधानसभा चुनाव से पहले सूबे की सियासत में अटकलों और कयासों का बाजर गर्म है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से उम्मीदवारों की तीन लिस्ट जारी कर दी गई हैं. खास बात ये है कि अभी तक पार्टी की तरफ से राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के टिकट को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है. 79 उम्मीदवारों की सूची में शिवराज का नाम ना होने की वजह से कयास लगाए जा रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उनका टिकट कट सकता है. ऐसा इसलिए भी है कि क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में 177 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही बुधनी सीट से शिवराज सिंह चौहान के नाम का ऐलान कर दिया गया था. तो चलिए इस रिपोर्ट में नजर डालते हैं मध्य प्रदेश की सियासत में बनते बिगड़ते समीकरणों पर.
बीजेपी की तरफ से 79 उम्मीदवारों की सूची में 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों के नाम शामिल हैं. सीएम शिवराज की सीट को लेकर ऐलान अभी तक नहीं हुआ है. आने वाले दिनों में शिवराज सिंह की सीट को लेकर क्या होगा इसे लेकर भी संशय बना हुआ है. इस बीच केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा के रण में उतारने के पीछे मंशा के लेकर बीजेपी का कहना है कि इससे सामूहिक नेतृत्व का संदेश जाता है. साथ ही चुनाव में जीत के बाद सीएम के विकल्प भी खुले हैं. केंद्र की राजनीति में सक्रिय नेताओं को संदेश दिया गया है कि उन्हें राज्य में सियासी ताकत दिखानी होगी. इन सबके बीच शिवराज को लेकर पार्टी क्या सोच रही है ये साफ नहीं हो पा रहा है.
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश की सियासत में बड़ा चेहरा हैं. उनके नेतृत्व में पार्टी राज्य में लगातार मजबूत भी हुई है. शिवराज ओबीसी वर्ग से आते हैं बुधनी सीट पर उनका वर्चस्व है. 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की 50.09 फीसदी आबादी ओबीसी है, अनुसूचित जनजाति 21.1 और अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 है. इन आंकड़ों के हिसाब से मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, उसमें ओबीसी का अहम रोल है और ओबीसी वर्ग से होने के नाते शिवराज सिंह चौहान राज्य की ज्यादातर सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं.
बात अगर पिछले चुनाव की करें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर देखने को मिली थी. ऐसे में इस बार बीजेपी पूरी तरह से एक्टिव है और कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. बीजेपी सातों सांसदों को जिन सीटों पर उतारा गया है, उनमें सें पांच वो सीटें हैं, जिन पर पार्टी पिछले चुनाव में हार गई थी और बाकी दो सीटें वो हैं, जिन पर जीत का अंतक काफी कम था. ऐसे मध्य प्रदेश की सियासत में शिवराज सिंह चौहान को लेकर जिस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं उस पर बारीकी से नजर डालें तो पता चलता है कि बीजेपी ने अब तक उन सीटों को टच नहीं किया है जहां पिछले विधानसभा चुनाव में उसकी जीत हुई थी. शिवराज सिंह चौहान की सीट बुधनी है. इस सीट पर लंबे समय से शिवराज सिंह दबदबा है. जीतने वाली सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा ना होने की वजह से अभी ये कहना गलत होगा कि शिवराज सिंह का टिकट काट दिया गया है.
बीजेपी की तरफ से केंद्रीय नेताओं को राज्य की तरफ मूव करने का साफ मतलब ये भी है कि शिवराज सिंह चौहान अब मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के स्वाभाविक रूप से अकेले दावेदार नहीं रहेंगे. कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, कैलाश पटेल ऐसे नाम हैं जो पिछले कई साल से सूबे की सियासत में बड़ा रोल प्ले करना चाहते हैं. केंद्रीय नेतृत्व भी इन नेताओं को जमीन पर परखना चाहता है लिहाजा दिल्ली से मध्य प्रदेश का रास्ता दिखाया गया हे. बीजेपी का साफ एजेंडा है कि पहले जीत उसके बाद पार्टी तय करेगी कि नेता कौन होगा. हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान की सियासत में इस बार बीजेपी की तरफ से बदलाव जरूर देखने को मिल सकता है.
चुनावों में नाकामियां फिलहाल सीएम शिवराज का पीछा छोड़ती हुई नजर नहीं आ रही. बीजेपी को भारी नुक़सान का डर सता रहा है. सीधी में पेशाब कांड और अब उज्जैन में नाबालिग बच्ची के साथ हुई हैवानियत के बाद मध्य प्रदेश सरकार विरोधियों के निशाने आ गई है. कांग्रेस नेताओं ने सीएम शिवराज पर निशाना सााधते हुए कहा है कि आपकी विदाई तय है.
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