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India Daily

सर्द मौसम में आमरण अनशन के लिए तैयार लद्दाख के लोगों ने बयां किया अपना दर्द

Ladakh protest: लद्दाख के लोग जिस तरह से सर्द मौसम में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, उनके अपने दर्द उभरकर सामने आए हैं. वे मांग ना माने जाने पर आमरण अनशन तक के लिए तैयार हैं.

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Edited By: Antriksh Singh
ladakh protest

Ladakh protest: बीते शुक्रवार को लेह में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि केंद्र सरकार ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, दो सांसदों के चुनाव की व्यवस्था करने और युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों की गारंटी देने का वादा किया था, लेकिन ये वादे पूरे नहीं किए गए.

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे आमरण अनशन करेंगे. वहीं केंद्र सरकार ने स्थानीय प्रतिनिधियों को 19 फरवरी को बातचीत के लिए बुलाया है.

लद्दाख के लोग अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतरे हैं:

लद्दाख के लोगों का कहना है कि 19 फरवरी को होने वाली बातचीत से कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन हम फिर भी बातचीत में शामिल होंगे. अगर बातचीत सफल नहीं होती है तो वे आमरण अनशन पर बैठेंगे. लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि उनको मांगो को अनसुना किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनकी मांगें भारत के संविधान के दायरे से बाहर नहीं हैं.

लद्दाख को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

मौसम की चुनौतियां
सामरिक तौर पर ये संवेदनशील इलाका है
युवाओं के लिए रोजगार नहीं है

स्थानीय लोगों द्वारा बताया गया है कि बीते चार वर्षों में लद्दाख में एक भी गजटेड पद को भरा नहीं गया है. सरकार ने वादा किया था कि लद्दाख के लोगों का सशक्तिकरण किया जाएगा. वे एक अलग विधानसभा भी चाहते हैं.

लोकल लोग अफसरशाही की मनमानी से भी त्रस्त हैं. मौसमी संकट का भी सामना कर रहे हैं. मौजूदा समय में लोग कड़ाके की ठंड के बावजूद सड़क पर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं.

लद्दाख को सारे अधिकार देने का वादा: क्या हुआ?

बीजेपी से गुहार लगाई जा रही है कि पार्टी अपने 2019 के चुनावी घोषणापत्र के वादे को पूरा करे. ये याचना अब रोष में तब्दील हो गई है. लद्दाख हिल काउंसिल के चुनाव में भी बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में लद्दाख के लोगों के लिए छठी अनुसूची को लागू करने की बात की थी. लद्दाख के लोगों का कहना है कि छठी अनुसूची लागू होने से उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाने में मदद मिलेगी. उन्हें अपनी ज़मीन, पानी और जंगलों पर अधिक अधिकार मिलेंगे.

छठी अनुसूची में क्या है?

यह संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत विशेष प्रावधानों का एक समूह है. इसी के चलते असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन है. छठी अनुसूची के तहत, जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त ज़िले बनाने का प्रावधान है.

लद्दाख का एक सरल परिचय

5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर, दोनों को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया. लद्दाख़ में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय की आबादी क्रमशः 46% 54% हैं. कुल आबादी 3 लाख है.

यहां दो मुख्य जिले हैं: लेह और करगिल. लेह ज़िले में श्योक और नुब्रा इलाक़े, और करगिल जिले में सरूं, दरस और जांस्कर इलाके शामिल हैं.

जाड़े में, लद्दाख के कई इलाक़ों में तापमान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. भारी बर्फबारी के कारण, ये क्षेत्र करीब चार महीनों तक कश्मीर घाटी से कटा रहता है.

सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील लद्दाख के लोग खेती या अपना कारोबार करते हैं. 

2020 में, भारत और चीन के सैनिकों के बीच लद्दाख़ में गलवान घाटी में तनाव बढ़ गया था. दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में कई लोग हताहत हुए थे. तब से, दोनों देशों के बीच लद्दाख में तनाव की स्थिति बनी हुई है.