menu-icon
India Daily

24 साल चलाई सरकार, लगातार मिलती रही जीत, फिर कहां चूक गई नवीन पटनायक की BJD?

BJD Odisha: 24 साल से ओडिशा की सत्ता पर राज कर रही बीजेडी को इस बार बीजेपी ने हराकर राज्य की सत्ता से बाहर कर दिया है. अब बीजेपी ओडिशा में सरकार बनाने जा रही है.

auth-image
Edited By: India Daily Live
Naveen Patnaik and Narendra Modi
Courtesy: Social Media

ओडिशा में साल 2019 में एक साथ हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को देखते हुए यह बात साफ थी कि साल 2019 के मुकाबले बीजेपी साल 2024 में बेहतर प्रदर्शन करेगी. ओडिशा के सभी राजनीतिक मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान था कि लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का बेहतरीन प्रदर्शन रहेगा लेकिन विधान सभा में बीजू जनता दल का इतना बुरा हाल हो जाएगा, इसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था. ओडिशा के चुनाव को लेकर जो अनुमान लगाए जा रहे थे. उसके मुताबिक, इस बार के चुनाव में बीजेपी लोकसभा में अपनी जीत दर्ज कराती. वहीं साथ ही बीजू जनता दल (बीजेडी) के नवीन पटनायक लगातार छठी बार ओडिशा में अपनी सरकार बनाते लेकिन मामला उल्टा पड़ गया.

लोकसभा चुनाव 2024  के नतीजे के साथ ही ओडिशा विधानसभा चुनाव के नतीजे भी सामने आ गए हैं. राज्य में भाजपा ने सबसे अधिक सीटें जीती हैं. 78 सीटें जीत कर भाजपा ने बहुमत के आंकड़े को पार कर लिया है. सभी प्रमुख एग्जिट पोल में एनडीए की बढ़त दिखाई गई थी. वहीं, भाजपा ने लोकसभा की 21 में से 20 सीटें जीत ली हैं साथ ही एक सीट कांग्रेस के खाते में गई हैं. यहां सत्तारूढ़ बीजेडी का खाता भी नहीं खुल सका है.

वहीं विधानसभा चुनाव में बीजेडी को मात्र 51 सीटें, कांग्रेस को 14 सीटें मिलीं जबकि निर्दलीय को तीन और सीपीएम को एक सीट पाकर संतुष्ट होना पड़ा. पिछली बार के लोकसभा चुनाव में बीजेडी को 12 सीटें मिली थी. बता दें कि पिछली बार की तरह इस बार भी नवीन पटनायक दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे थे. अपने पारंपरिक चुनाव क्षेत्र हिंजली से जहां उन्हे केवल 4,636 वोटों से जीत मिली थी. वही कांटाबांजी सीट पर उन्हें बीजेपी के लक्ष्मण बाग ने 16,344 वोटों से हरा दिया है.

आखिर क्यों बीजेडी का सूपड़ा ओडिशा से साफ हो गया?

लगातार पांच बार भारी बहुमत से जीतने वाले, राज्य के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जो कभी कोई चुनाव नहीं हारे, इस बार मात खा गए. विश्लेषकों की मानें तो उनकी हार का सबसे बड़ा कारण था, आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश करने वाले उनके पूर्व निजी सचिव वीके पांडियन को पार्टी की कमान पूरी तरह से थमा देना.

जानकारी के मुताबिक, पांडियन पिछले अक्टूबर तक नवीन पटनायक के निजी सचिव हुआ करते थे. पांडियन के आने के बाद नवीन ने पार्टी की पूरी कमान पांडियन के हाथ में सौंप दी थी. रिपोर्ट्स की मानें तो इस बार के चुनाव में पांडियन ने ही चुनाव प्रचार और सीटों पर कैंडिडेट का चयन करने का पूरा जिम्मा उठाया था. हालांकि, अब नवीन पटनायक इस बात से इनकार कर रहे हैं कि पांडियन उनके उत्तराधिकारी हैं. पांडियन ने भी राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है.

आरोप है कि जब से पांडियन ने पार्टी की कमान संभाली थी, तब से कोई भी पार्टी का वरिष्ठ नेता, अधिकारी, मंत्री या फिर विधायक नवीन पटनायक से सीधे तौर पर बात नहीं कर पाता था. कहा जाता है कि पार्टी और सरकार के सारे फैसले पांडियन ही लिया करते थे. शायद यही वह वजह थी कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता के रोष ने बीजेडी को सत्ता से दूर कर दिया कर दिया. वीके पांडियन मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं. इस बात का फायदा बीजेपी ने बड़ी चतुराई के साथ उठाया है.

बीजेपी ने इस बार के चुनाव में 'ओड़िया अस्मिता' को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था. प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के सभी नेताओं ने बार-बार इस बात को दोहराया है. ओडिशा के साढ़े चार करोड़ लोगों को अपना 'परिवार' बताने वाले नवीन पटनायक, अपने राज्य और पार्टी के सभी नेताओं को नजरअंदाज कर तमिलनाडु में जन्मे एक आदमी को सत्ता संभालने का ज़िम्मा सौंप दिया है. 

भारतीय जनता पार्टी का यह फॉर्मूला ओडिशा के चुनाव में काफी कारगर साबित हुआ. जिसकी वजह से इस बार बीजेपी ने सफलता पूर्वक बीजेडी का सूपड़ा ओडिशा से साफ कर दिया है.

बीजेपी की चुनावी दौड़

इस बार बीजेपी ने ओडिशा पर जितना जोर लगाया वह पहले कभी नहीं देखा गया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार बार राज्य का दौरा किया. इस दौरान 10 रैलियां और दो रोड शो किए जबकि अमित शाह, जेपी नड्डा समेत पार्टी के सभी चोटी के नेता बार-बार ओडिशा आए और जमकर प्रचार किया. उत्तर प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने भी राज्य के कई दौरे किए. वहीं भूपेंद्र यादव और कुछ अन्य नेता पूरे प्रचार के दौरान यहां बने रहे और प्रचार अभियान का संचालन किया.

ओडिशा में बीजेपी के बढ़ते कदम

बीजेपी को ओडिशा में यह अपार सफलता केवल पिछले डेढ़ महीने के प्रचार की वजह से नहीं मिली. साल 2009 में बीजेडी के साथ गठबंधन टूटने के बाद पार्टी राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की लगातार कोशिश करती रही है.

  • साल 2004 चुनाव में 7 लोकसभा सीटें और 32 विधानसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी. साल 2009 में एक भी लोकसभा सीट जीत नहीं पाई. जबकि, विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या केवल छह रह गई.
  • पार्टी का वोट शेयर लोकसभा चुनाव में क़रीब 13 % और विधानसभा चुनाव में लगभग 15% था.
  • साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को एक लोकसभा सीट और 10 विधानसभा सीटें मिलीं. पार्टी का वोट शेयर 22 फीसदी और 18 फीसदी ही रह गया था.
  • साल 2019 में बीजेपी को 8 लोकसभा सीटें और 23 विधानसभा सीटें मिलीं. लेकिन गौर करने वाली बात यह थी कि पिछले (2014) चुनाव के मुकाबले इस बार पार्टी के वोट शेयर में भारी इजाफा हुआ.
  • लोकसभा में यह शेयर 38.4% पर जा पहुंचा था. जो बीजेडी के 42.6% से कुछ ही कम था. हालांकि, विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 32.49% वोट मिले जो बीजेडी के 44.71% से काफी नीचे था.
  • लेकिन इस बार पार्टी ने एक लंबी छलांग लगाते हुए लोकसभा चुनाव में अपने वोट शेयर को 45.34% तक पहुंचाया. जबकि, बीजेडी का शेयर सिमट कर केवल 37.53% ही रह गया. हालांकि, विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर थी लेकिन सीटें बीजेपी को अधिक मिलीं. इस बार बीजेपी का वोट शेयर 40.07% रहा. जबकि, बीजेडी का 40.22% है.

कौन बनेगा ओडिशा में बीजेपी का मुख्यमंत्री?

सबसे अधिक चर्चा में हैं मोदी के चहेते और देश के महालेखाकार (सीएजी) गिरीश मुर्मू, जो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरह मयूरभंज जिले से आते हैं. इनके अलावा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, सांसद वैजयंत पांडा और राज्य बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद सुरेश पुजारी के नाम भी चर्चा में हैं. अगर पार्टी चुने गए विधायकों में से किसी को मुख्यमंत्री बनाती है तो पुजारी ही सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही यह घोषणा कर दी थी कि 10 जून को राज्य में बीजेपी सरकार का शपथ ग्रहण उत्सव होगा.