History Of INDIAN Space Agency ISRO: आज पूरी दुनिया जिस इसरो की बात कर रही है उसकी कहानी संघर्ष भरी रही है. 1947 को जब देश आजाद हुआ तब उसके पास कुछ नहीं था. तब हमने अंतरिक्ष पर जाने की भी कल्पना नहीं की थी लेकिन हमारे हौसले इतने बुलंद थे कि हमारे वैज्ञानिकों ने असंभव को संभव कर दिखाया. आज आपको वो कहानी बताते हैं कि कैसे साइकिल और बैलगाड़ी पर रॉकेट ढोने से लेकर भारत ने चंद्रयान-3 तक का सफर तय किया. इस सफर की दास्तां पढ़कर अपने हिंदुस्तानी होने पर फक्र करेंगे आप.
इसरो की स्थापना
देश की आजादी के बाद हालात बहुत खराब थे. पूरा हिंदुस्तान बंटवारे की आग में सुलग रहा था. सब कुछ सुन्न था. पहली प्राथमिकता थी कि देश की जनता भूखी न रहे. सब कुछ ऐसे चलता रहा फिर आया 1962. इस वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की. बाद में 5 अगस्त, 1969 को इसका नाम बदलकर 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (ISRO) कर दिया गया. ये काम डॉ. विक्रम साराभाई ने किया. इसरो के कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा हाथ है तो वो है डॉ. विक्रम साराभाई का. इन्हीं की बदौलत देश आज अंतरिक्ष में परचम लहरा रहा है.
इसरो का सफर । ISRO journey
2014 में रच दिया इतिहास
2014 में तो भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास ही रच दिया. 450 करोड़ की लागत से बने मिशन मंगलयान को लांच किया. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना था.
22 जुलाई, 2019 को भारत ने अपना दूसरा मून मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया था. यह मिशन काफी हद तक सफल रहा था.
चंद्रयान-3 हुआ लॉन्च
भारत अंतरिक्ष की उभरती हुई एक महाशक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. 14 जुलाई, 2023 को तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 को लॉन्च किया था. आज चांद की धरती पर चंद्रयान-3 उतरकर इतिहास रचेगा.
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