भारतीय रुपया सोमवार (13 जनवरी) को डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 86.4850 पर पहुंच गया, क्योंकि डॉलर इंडेक्स में वृद्धि जारी है. यह दिसंबर 27 के बाद का सबसे बड़ा इन्ट्रा-डे गिरावट था. जो पिछले कुछ समय से जारी गिरावट का हिस्सा है. इस गिरावट के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारण हो सकते हैं, जिनमें अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरें और भारत में निर्यात में कमी शामिल हैं.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को अमेरिका में गैर-कृषि पेरोल डेटा उम्मीद से कहीं ज़्यादा मज़बूत आने के बाद सोमवार को डॉलर इंडेक्स 109.98 के 2 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. डेटा ने यूएस फेड की ब्याज दरों में कटौती के लिए बाजार की उम्मीदों को बदल दिया है. केयरएज रेटिंग्स की एसोसिएट इकोनॉमिस्ट मिहिका शर्मा ने कहा कि बाजार अब सितंबर 2025 में अगली 25 बीपीएस फेड दर में कटौती की उम्मीद कर रहे हैं, जबकि पहले 2025 के मध्य में कटौती की उम्मीद थी.
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी का असर
अमेरिका द्वारा रूस के तेल उत्पादकों और जहाजों पर प्रतिबंध लगाने के बाद, कच्चे तेल की कीमतों में भी वृद्धि हो रही है, जो भारतीय रुपया पर और दबाव बना रही है. ब्रेंट क्रूड की कीमत $80 प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गई, जो पिछले चार महीनों का उच्चतम स्तर है. रूस से चीन और भारत जैसे शीर्ष आयातकों को तेल आपूर्ति में कमी के कारण रुपये पर दबाव बढ़ा है. आयातकों ने डॉलर खरीदी, जिससे रुपये में और गिरावट आई. इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा पूंजी निकासी भी भारतीय मुद्रा को प्रभावित कर रही है.
घरेलू बाजारों में कमजोरी के कारण रुपया कमजोर रहेगा
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा, "हमें उम्मीद है कि मजबूत डॉलर और घरेलू बाजारों में कमजोरी के कारण रुपया कमजोर रहेगा. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और वैश्विक बाजारों में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति भी रुपये पर असर डाल सकती है. इस सप्ताह भारत और अमेरिका से मुद्रास्फीति के आंकड़ों से पहले व्यापारी सतर्क रह सकते हैं. USDINR स्पॉट कीमत 86.25 रुपये से 86.80 रुपये के बीच रहने की उम्मीद है.