नई दिल्ली. भारत की संस्कृति में अनेकों रहस्य छिपे हैं. हमारा इतिहास धार्मिक कहानियों से भरा पड़ा है. ऐसी बहुत सी कहानियां है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. इन्हीं में से एक कहानी है राजा भर्तृहरि की. महाराज भर्तृहरि, सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे. उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसके बाद उन्होंने अपना राजपाट त्याग कर सन्यास धारण कर लिया और इतनी कठोर तपस्या की महान साधु बन गए. वो संस्कृति के विद्वान कवि और बड़े नीतिकार थे. उन्होंने वैराग्य शतक श्रृंगार, शतक और नीति शतक की रचना की है. उनकी गिनती महान साधुओं में होती है.
पत्नी के चक्कर में धारण कर लिया वैराग्य
राजा भर्तृहरि के वैराग्य धारण करने के पीछे कई कहानियां बताई जाती हैं. इन्हीं में एक कहानी बहुत प्रचलित हैं. हम उसी कहानी का जिक्र करेंगे. इस कहानी में उनकी पत्नी प्रमुख भूमिका में है. कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे. एक दिन उन्हें पता चला कि उनकी धर्म पत्नी पिंगला किसी और के ऊपर मोहित है. इस बात से नाराज होकर उन्होंने वैराग्य धारण करने का निर्णय ले लिया. इसके बाद वो अपना राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को देकर वो बाबा गोरखनाथ की शरण में चले गए थे.
कहानी आगे बढ़ती है राजा भर्तृहरि तपस्या में लीन हो जाते हैं. उनकी तपस्या देख देवताओं के राजा इंद्र उनसे भयभीत हो गए थे. उन्हें लगा की कहीं शिव जी वरदान पाकर राजा भर्तृहरि स्वर्ग पर आक्रमण न कर दें. इसलिए उन्होंने राजा भर्तृहरि पर पत्थर से हमला किया. राजा अपनी तपस्या में लीन थे फिर भी उन्होंने एक हाथ से इंद्र द्वारा फेंके गए पत्थर को रोक लिया.
आज भी है उनके हाथ के पंजों के निशान
कहा जाता है कि राजा उसी अवस्था में तपस्या करते रहे. उनके एक हाथ में पत्थर था फिर भी उनकी तपस्या भंग नहीं हुई. सालों तक वह एक ही अवस्था ईश्वर के प्रति समर्पित रहे. अपनी तपस्या में लीन रहे थे. उस पत्थर पर राजा भर्तृहरि के निशान बन गए थे.
उज्जैन की भर्तृहरि गुफा में राजा की जो प्रतिमा है उसके ऊपर लगे पत्थर में आज भी राजा भर्तृहरि के पंजे के निशान मौजूद है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी उज्जैन यात्रा के दौरान इसी गुफा में जाएंगे.
यह भी पढ़ें- CM Yogi Adityanath: 13 सितंबर को उज्जैन जाएंगे UP के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, करेंगे महाकाल के दर्शन